नज़र
न तुम्हारी नज़र का कसूर था,न मेरी नज़र का कसूर था
दिल भी हमारा हम दोनों की तरह ही बेकसूर था।
तुम्हारा नज़र उठाना, मेरा नज़र झुकाना
एक दूसरे से दूर होकर भी धड़कनों के पास आना।
हम दोनों के चेहरे पर जो हया का नूर था।
न तुम्हारी नज़र का कसूर था,न मेरी नज़र का कसूर था
दिल भी हमारा हम दोनों की तरह ही बेकसूर था।
सोचा था इक बार बताएँगे तुम्हें हाल-ए-दिल
तुम जो सामने आते था इज़हार करना मुश्किल।
तुम्हारी नजरों में मेरे लिए प्यार जरूर था ।
न तुम्हारी नज़र का कसूर था,न मेरी नज़र का कसूर था
दिल भी हमारा हम दोनों की तरह ही बेकसूर था।
जब चोरी चोरी चुपके चुपके मेरा दीदार तुम करते थे
और मुझसे बिछड़ने से कितना तुम डरते थे।
मेरे हर वादे पर तुम्हें विश्वास जरूर था।
न तुम्हारी नज़र का कसूर था,न मेरी नज़र का कसूर था
दिल भी हमारा हम दोनों की तरह ही बेकसूर था।
हर वक़्त याद आते हैं वो लम्हे
जो साथ हमने बिताए थे।
इतना प्यार करके भी
हम इकरार कर न पाये थे।
तुम्हारी इसी सादगी पे तो मुझे गुरूर था।
न तुम्हारी नज़र का कसूर था,न मेरी नज़र का कसूर था
दिल भी हमारा हम दोनों की तरह ही बेकसूर था।