दोहे
जीवन में जो भी मिला, मानो तुम आभार।
अपने बस में कुछ नहीं, इतना सा है सार।
मेरे तो बस में नहीं, पढ़ना यह संसार।
दुनिया में मिलते नहीं, सबके सभी विचार।
कैसे कैसे लोग हैं, कैसे इनके रूप।
बिना करे कुछ काम ये, कहते खुद को भूप।
बोतल में भर कर मिले, अब तो पानी देख।
फिर भी करते कुछ नहीं, लिखते सिर्फ प्रलेख।
हर पल का उपयोग कर, जीवन है अनमोल।
सही गलत जो भी लगे, उस पर आकर बोल।
सावन आए जोर से, करता वह बौछार।
ख़ुशी मनाते है सभी, जैसे हो त्यौहार।
कलयुग में मिलते नहीं, आसानी से राम।
दुनिया में चलता नहीं, सिर्फ बात से काम।
सच्चा नाता हो अगर, करते हम विश्वास।
करते है हम जन सभी, अपनों से ही आस।
पेड़ो तुम काट कर, कैसे लोगें छाँव।
शहरों की इस होड़ में, भूल गए तुम गाँव।
किसी को नहीं चाहिए, जो है उनके पास।
ज़िन्दगी से सुकून की, रहती सबको आस।