पिता
लाख मुश्किल हों मगर हम से नहीं कहते पिता।
घर चलाने के लिए क्या क्या नहीं सहते पिता ।।
सब की इच्छा पूरी करते अपनी ख़्वाहिश मार कर।
अपने बच्चों के लिए रख देते हैं सब वार कर।।
बाप के ही दम से हम को दुनिया में इज्ज़त मिली।
बाप के आशीष से ही मुझ को ये दौलत मिली।।
जेब हो खाली भले पर ना नहीं करते पिता।
घर चलाने के लिए क्या क्या नहीं सहते पिता।।
बाप से अच्छा सखा जग में नहीं कोई हुआ।
बाप बिन ये ज़िन्दगी लगती है बस केवल धुँआ।।
बाप के कारण बनी घर की ये ऊँची शान है।
बाप के ही नाम से होती यहाँ पहचान है।।
दर्द में भी खुल के जी भर रो नहीं सकते पिता।
घर चलाने के लिए क्या क्या नहीं सहते पिता।।
बाप से भी तुम बड़े हों चाहता ये बाप है।
दर्द की दहलीज़ पर भी मुस्कराता बाप है।।
उस ने उड़ने के लिए आकाश तुम को दे दिया।
हर क़दम जीतोगे ये विश्वाश तुम को दे दिया।।
रात दिन इस ज़िन्दगी से जंग हैं लड़ते पिता।
घर चलाने के लिए क्या क्या नहीं सहते पिता।।