मैं हर इक बात पे रोता रहा हूँ

मैं हर इक बात पे रोता रहा हूँ,
इसी कारण तो मैं छोटा रहा हूँ।

मुझे ख़ुद से अलग कैसे करेगी,
मैं तेरी रूह का हिस्सा रहा हूँ।

वो मुझ से दूर जो बैठी हुई है,
मैं उसके हाथ का कँगना रहा हूँ।

उसे क्या याद भी आती है मेरी,
मैं जिस की याद में मरता रहा हूँ।

ख़ुदा जिन को समझता था मैं अपना,
उन्हीं लोगों को मैं चुभता रहा हूँ।

कभी ख़ुशियाँ न जिस को रास आई,
मैं वो तक़दीर का मारा रहा हूँ।