मिट गई जिस रोज़ से हाँ बेबसी

मिट गई जिस रोज़ से हाँ बेबसी,
ख़ूब सूरत हो गई है ज़िन्दगी।
चार दिन भी तुम न तन्हा रह सके,

हम ने तो तन्हा गुज़ारी है सदी।
जो भी दिल में था वो सब कुछ कह दिया,
बात कोई भी नहीं है अनकही।

हो गई है देश की ऐसी फ़िज़ा,
आदमी से ख़ुश नहीं है आदमी।

आज वो हम से मिले कुछ इस तरह ,
राह में मिलते हैं जैसे अज़नबी।

ख़ुश हैं सुनकर के लतीफ़े ही सभी,
कौन सुनता है संजीदा शायरी।