तल्ख मौसम

आज के मौसम में
कुछ तल्खी सा लगा,
धूप का रंग भी कुछ
हल्का सा लगा।

हवा की बयानबाजी
में कुछ हँसी सी है,
लगा ऐसे इनमें कुछ
ठनी सी है।

बादलों की आवा-जाही
में सरगर्मी सी है,
पानी की बूँदों में
एक तपिश सी है।

इंद्रधनुषी रंग कुछ
सिमटा सा लगा,
इन्हें भी अपना अस्तित्व
मिटता सा लगा।

परिन्दों को ऊँचाइयों से
जैसे लगने लगा है डर,
इनके घोंसलों में भी तिनके
नजर आने लगे हैं कम।

दिन ढलने में समय सा
लगने लगा है,
शाम की गहराई का रंग
भी कुछ गहरा सा लगा है।

फूलों की क्यारियों की
नुमाइश सी होने लगी है,
इनकी खुशबू में भी कुछ
गुन्जाइश सी होंने लगी है।

ऐसा ना हो कि इनकी
खुशबू ही ना रहे,
कह दो की इनके खुशबू
की पहचान कर ले।

दीपक तले अन्धेरा तो
होता ही है,
रात के बाद तो सवेरा
तो होता ही है।

ये सोच कर अंधेरों से
घबराओ न कभी,
अपने अस्तित्व को मिट
जाने से बचाओ सभी।