गुलशन

हर गुलशन में फूलों का
कुछ मान होता है
उसकी ख़ुशबू का कुछ
इमान होता है।
यूँ ही बिखेर देती है महक,
गुलिस्ताँ में मगर
उसे भी अपने रहगुजर का
इन्तजार होता है।
पतझड़ मे छोड़कर के
डालियों का यूँ संग
बहारों के आ जाने का
इन्तजार करती है।
सूखे दरख्तों मे कभी
जब कली फूट जाती है
अपने अस्तित्व में आ जाने का
फरमान लाती है ।
देकर के रगों-आब गैरों
को वो मगर
भौरो के संग रहकर भी
वो मुस्कुराती है ।
रौनक कभी हुस्न कभी
महफिल का बनकर के
अपने ही भाग्य पर
कभी वो इतराती है।
रह करके वो सबल अपने
हौसलों पर प्रतिपल
देती ये सन्देश अपने
इश्क़वालों को ।
डाली से टूट करके तुम
गम ना यूँ करो
अपनो से छूट कर भी
बनो सबल यूँ ही।
हो जाओ किसी में तुम
इस कदर विलीन
ढूढ़ें चहुं ओर लोग
ख़ुशबू की तरह।