बसन्तोत्सव सुनीता गोंड सखी आयी यह बेला बडी़ विभावरीसजी चहुं ओर बसंती सा लोक।रवि की किरणो का आनन्दित आलोककरती छन-छन, कल-कल क्रीड़ा सरोज।पिहु का मधुर कलरव सुबोधकराता सौन्दर्य का अद्भुत सा बोध।भर-भर अन्जुलि पुष्पों का लिए बसंतपुष्पों का पुष्पों से यह प्रेम अनन्त।सखी यह प्रीत का अद्भुत सा दृश्य पटल।