माँ की महिमा

महिमा मण्डित रूप अलौकिक
क्षत्र धारणी सिंह वाहिनी
नौ रूपो की शरण दायिनी।

असुरो का कर ध्वन्स
बचाया धरती का विध्वन्स
कर के देवो का उद्धार
किया भव सागर से पार।

तुंग शैल पर बसने वाली
धरणीधर तेरे नाम अनन्त
छम छम करते तेरे नूपुर नाद
मन में भरता प्रेम उन्माद।

नैनो में अविचल अग्नि ज्वाला
ह्दय समाया प्रेम विशाला
श्रद्धेय माँ तेरी छवि निराली
मन वान्छित वर देने वाली।

जय जय जय हो उद्घोष तुम्हारी
हे माँ तुम हो जगत दुलारी।