याद बहुत ही आता है

दूर देश में रहने पर जब
याद बहुत घर आता है
मन के अन्दर बैठा बचपन तब
गाँव की दौड़ लगाता है। 

याद बहुत ही आता है
मन ब्याकुल हो जाता है,
माँ के हाथों की रोटी का स्वाद वह
याद बहुत ही आता है।

बाबा की मिरज़ई पहन कर
फिर फिर स्वाँग रचाना वह
याद बहुत ही आता है।

खेतो की पगडंडी पर
जोर जोर चिल्लाना वह
दीदी की चोटी पकड़
झूम-झूम मुसकाना वह
याद बहुत ही आता है।

भईया की टूटी साईकिल का
पहिया रोज घुमाना वह
आमों की बगिया का आम
चुरा चुरा कर लाना वह
याद बहुत ही आता है।

ठंडी सी पुरवाई को मन
तरस तरस अब जाता है
कुएँ के मीठे जल का वह
प्यास भूला नही जाता है।
याद बहुत ही आता है
मन ब्याकुल हो जाता है ।