याद बहुत ही आता है सुनीता गोंड दूर देश में रहने पर जबयाद बहुत घर आता हैमन के अन्दर बैठा बचपन तबगाँव की दौड़ लगाता है। याद बहुत ही आता हैमन ब्याकुल हो जाता है,माँ के हाथों की रोटी का स्वाद वहयाद बहुत ही आता है।बाबा की मिरज़ई पहन करफिर फिर स्वाँग रचाना वहयाद बहुत ही आता है।खेतो की पगडंडी परजोर जोर चिल्लाना वहदीदी की चोटी पकड़झूम-झूम मुसकाना वहयाद बहुत ही आता है।भईया की टूटी साईकिल कापहिया रोज घुमाना वहआमों की बगिया का आमचुरा चुरा कर लाना वहयाद बहुत ही आता है।ठंडी सी पुरवाई को मनतरस तरस अब जाता हैकुएँ के मीठे जल का वहप्यास भूला नही जाता है।याद बहुत ही आता हैमन ब्याकुल हो जाता है ।