मधुर मिलन सुनीता गोंड शाम की बेला कब छायी थीरात अन्धेरी कब आयी थीमधुर मिलन कि भरी दुपहरीअपना सुध भी खो आयी थी।दुख की बेला बिसर गयी हैसुख अक्षुण्ण निकट लायी हैटूट चुकी थी लड़ी जो दिल कीआज पिरोने फिर आयी है।खुले केश अधखुले मुखडे़ परप्रेम घटा फिर घिर आयी हैभरी लाज आँखो में सहसाहोठ मधुलिका बन आयी है।आँख खुली जब अलसायी सीनिशा किरण जल भर लायी थीप्रिय मिलन की आस जगी फिरस्वप्न की कलियाँ मुरझायी थी।