एक विचार

एक शिल्पकार करता है
ठक-ठक, खट-खट
अनेकों बार
अपनी रचना पर करता हैं
प्रहार
बार बार
किन्तु है वह
निर्जीव और लाचार
है अद्भुत !
किन्तु सत्य उसकी
रचना
सफेद सघन आँखों से
देखता वह
रचना और सौन्दर्य का
अद्भुत मिलन।

करता नहीं कोई प्रतिकार
क्योंकि भूख और लाचारी है
उसकी रचना
जिन्हें करता है वह प्यार
उसकी जर्जर हड्डियाँ,
झुकी कमर
बोझिल शरीर
नही देख पाती
रचना और सौन्दर्य का
अद्भुत मिलन
कुछ भूखे और अधनंगे बच्चे
घूमते है सौन्दर्यमयी रचना के
ईर्द गिर्द
शिल्पकार अपनी रचना को और
करता है साकार
उन्हे देखकर।