आँसू

आँखों की सीलन बनके क्यों गालो पर लुढ़क आते हो तुम?
लफ़्ज खामोश ही हैं पर अनेकों जज़्बात बयां कर जाते हो तुम।

ग़म-ए-हमसफर सा तो तुम रहते हो साथ,
खुशी में भी कभी क्यों मोती सा टपक जाते हो तुम।

गहरे जख्मों पर भी मरहम बन उभर आते हो तुम,
प्रेमियों के आँखो में सदा आसरा ही बना जाते हो तुम ।

बयां क्यों ना करे ‘सुनीता’ तेरे दरियादिली का सबब,
चन्द पक्तियों में ही क्यों ऐसे सिमट आते हो तुम ।।