प्रिय की बाहों का हार मिले सुनीता गोंड प्रिय की बाहों का हार मिलेऐसा ही कुछ उपहार मिलेले चल मुझको उस पार कहींजिसके पिछे संसार नहीं।है जीवन का उद्धार वहीप्रिय से सब कुछ मैं हार गयीइससे बढ़कर कुछ चाह नहीजो माँगा था मिल गया वही।ह्दय पर ऐसा कुछ भार नहीमन का कुछ उद्गार नहीजीवन रेखा का चक्र वहीजो मिल जाये स्वीकार वही ।रिश्तों की टूटी आस सहीप्यार से सीचीं धार सहीछोटी सी एक बात वहीतुमसे अपनी हर राह सही।