हार मानूँगी नही सुनीता गोंड यह जीत तो विराम हैजीवन चलने का नाम हैथक गयी पथ में अगरफिर भी रुकूगीं मैं नहीहार मानूँगी नही।संकल्प जो टूटा अगरविश्वास भी टूटा अगरउस कर्म पर मिट जाऊँगींलेकिन रुकूँगी मैं नहीहार मानूँगी नही।बीता समय जो ब्यर्थ अबहै यही बस खेद अबतोड़ूँगी अब उस व्यूह कोलेकिन रुकूँगी मैं नहीहार मानूँगी नही।निजता नही कुछ शेष अबहै यही उद्देश्य बसपा जाऊँ बस उस छोर कोवापस रुकूँगी मैं नहीहार मानूँगी नही।