मातृभूमि

हे मातृभूमि, हे जन्मभूमि
तेरे नित वन्दन गाऊं माँ
सुख समृद्धि जो दिया अकूत
उसका ही गौरव गान सुनाऊं माँ।

तेरे चरणों में शीश झुका कर
अपने को ऊँचा पाऊं माँ
जन्मी हूँ इसी धरा पर मै
सुन सुन गर्वित हो जाऊं माँ।

चरणों को धोता सागर है
सिर पर ताज हिमालय का
प्रकृति की अनुपम काया माँ
तुमसे ही सब कुछ पाया माँ।

है कृष्ण भूमि, है राम भूमि
जन्में ये इसी धरा पर है
तेरे ही आँचल का सुख पाकर
जन्मे थे वीर अनेक यहाँ।

जकडी़ थी जब तुम बेडी़ में
आँखो से निर्झर बह निकले
सुनते थे वीर सपूत यहाँ
रणभेरी लेकर थे निकले।

हर गाथा तेरी निराली माँ
सबसे ऊँची तेरी थाती माँ
जब जब तेरा गुणगान करूँ
हूँ श्रेष्ठ यही मै भान करूँ।