हम काशी के वासी सुनीता गोंड काशी में सब बासी अबतट का रहा न काशी अबपान बनारसी हुआ है फीकाघाट हुआ अब सूना सूना।चाय की अड़ी अब हुयी उदाससाड़ महोदय रहे न खासलस्सी की अब तास न ठंडीगंगा जी भी हैं अब रुठी।साडी़ में फुलकारी भी कमआम बनारसी में रहा न दममंदिर में बस करो विश्रामपंडो का भी यही बस काम।सड़को पर भिखमंगी हौजलगे स्वतंत्र भारत की फौजझूठ हुआ अब इतना खस्ताबिना दाम मिल जाये सस्ता।स्मार्ट सिटी की पहल जो आयीराजनीति की बस ढकच पायीहाथ बढ़ा बस ले लो भाईदान की गइया किसे सुहायी!काशी में जो तरने आयेलुटा पूटा तब घर को जायेतीन लोक से न्यारी काशीहाय ! सनातन सुख अधिवासी।