कैसे वह राग जुटाऊं मैं सुनीता गोंड कहो कहाँ पहुँच जाऊं मैकैसे वह राग जुटाऊं मैंकवि के संतृप्त विचारों कोकविता में कैसे बतलाऊं मैं।थोडा़ निर्जीव हुआ यह लयसोचे जब विकल हुआ यह मनकैसे सम्पूर्ण जगत का सारएक कविता में दिखलाऊं मैं।जो घटित हुआ वह तय तो थाउस पर क्या भाव लिखूं अब मैंजाऊं अदृश्य जगत के पारवहीं से कुछ उपक्रम ले आऊं मैं।कविता अनुबद्ध करेगी तबकुछ सृजन अलग कर लेगी तबछेडे़ कुछ ऐसा राग विलगस्वर जन तक ऐसा पहुँचाऊं मैं।