कैसे वह राग जुटाऊं मैं

कहो कहाँ पहुँच जाऊं मै
कैसे वह राग जुटाऊं मैं
कवि के संतृप्त विचारों को
कविता में कैसे बतलाऊं मैं।

थोडा़ निर्जीव हुआ यह लय
सोचे जब विकल हुआ यह मन
कैसे सम्पूर्ण जगत का सार
एक कविता में दिखलाऊं मैं।

जो घटित हुआ वह तय तो था
उस पर क्या भाव लिखूं अब मैं
जाऊं अदृश्य जगत के पार
वहीं से कुछ उपक्रम ले आऊं मैं।

कविता अनुबद्ध करेगी तब
कुछ सृजन अलग कर लेगी तब
छेडे़ कुछ ऐसा राग विलग
स्वर जन तक ऐसा पहुँचाऊं मैं।