युग का निर्वाहक

यूँ ही नहीं था विचारक शेष
प्रबल था उनके वाणी का आग्रह
प्रबोधन और बंधन,
मुक्त नही थे उनके स्वर
बंधी थी उनमें विचारों की विकलता
जो स्वच्छन्द नही थे
उनमें थी उर्वरता और पोषण
उस दमित युग के प्रति
हर लय में थी सजलता
एक नयापन
अनुबंधन स्वयं का स्वयं से।