नमक

कविता में चुभन महसूस ज़िगर,
वेदना में संवेदना का हक ।
ऐ हवा ! नियति है प्रखर ,
शब्दों का संसार से चमक ।
तांडव करते हुए कहा सागर,
चल पड़े थे हौले-हौले सबक ।
मीन के निकेतन में लहर,
मौत से लड़ना नहीं नाहक ।
तन्हाई भी तो पल-पल ठहर,
नमक का हाल बताया महक ।
प्रेम का भी है असर,
अश्क का आंखों में धमक ।
पृच्छा कर आगे अग्रसर हमसफ़र,
पूरी कहानी की है झलक ।
उलझे हुए रंग के मंजर,
परछाई नहीं जाता है बहक ।