अधूरा विजय शंकर प्रसाद पल-पल जिज्ञासा बेशक अनुपम,इश्क का प्याला टूटा,दखल दाग हक़ एकदम,सबक मोहक नाहक लूटा !धुआं प्यासा महकती शबनम,सनक,ख्वाहिश अधूरा छूटा,दस्तक हवा का सरगम,सच झूठ को कूटा !!आग संग राख बेदम,मृगतृष्णा में यादें खूंटा,अनवरत चलना-फिरना अहम कसम,अंतिम घड़ी लावारिस जूता ।जिंदगी, मौत, दिलरूबा मौसम,खामोशियां भी उत्तर बूटा ,दर्पण,दर्शन और भ्रम,बहका परिंदा क्यों रूठा?निर्लोभ नहीं नदी हरदम,साहिल पे आभास अनूठा,सागर की लहरें बेशर्म,युक्ति,मुक्ति वहीं गूंथा ।