नग्नता

खता होती है जिंदगी,
मौत भी शायराना रंग।
हवा होती है जगी,
हम जिस्म रूह संग।
अकेले नहीं तो बंदगी,
प्रीत धरा-फलक तक जंग।
दर्पण में कुछ सगी,
नग्नता पर्दा में भंग।
तिमिर की भी बानगी,
मन हाशिए पर बदरंग ।
सियासत से छलका सादगी,
अश्रुपूर्ण विदाई भी पतंग।
डोर कहीं और बागी,
मत होना प्रियतमा बेढंग।
महफ़िल महफूज़ नहीं दौड़ी-भागी,
घड़ी की सूई बिजली उमंग।
नदी भी है नंगी,
जल मछलियों के सुरंग।
जाल में है मातंगी,
हर आलम में तंग।