देश

कुछ तो कहिए ललकार कर,
बहादुरी और ज्ञान असली धरोहर।
देश तो प्रेम का बैनर,
दोनों जीता है एकाकार होकर।
चंद सवाल हैं ढोते तेवर,
नहीं चाहते हैं सिरफिरा उत्तर।

कुत्ते जागते रहते हैं रातभर,
अनहोनी से तभी हम बेखबर।
सरहद पर भी प्रहरियों के लाव-लश्कर,
तभी तो जिंदा हमारे हैं घर ।

तिमिर को पता है छद्म मंजर,
रोशनी से वे गिरते हैं टूटकर।
स्मारक से आलोकित नहीं केवल सफर,
महफ़िल में गीतनाद से आहत जहर ।
कड़वा सच पीकर खड़ा हुआ खंडहर,
मिट्टी की कीमत जानना चाहिए प्रियवर।