मन की तितली

क़ातिल निगाह है मन की तितली,
उड़ी और कहीं है खड़ी बावली ।
कली तक उतरी और भी कई फिसली,
पता नहीं कि हम कौन गली ?
हवा भी गर्म हो रंगीन उतावली,
क्या है खिली और क्या अधखिली ??
नदी विचलित नहीं और मचली मछली,
आखिर भोली-भाली नाहक है गई छली।
साहिल पर पथिक खिड़कियां खुली,
गिरा दर्पण और सच बोली बलि।
दरबाजा पर दस्तक और यादें सांवली,
बेवफ़ाई के आलम में कौन-कौन भली ???
कश्तियां बदलने में दर्शन पगदंडी पतली,
खेवैया है हतप्रभ और धूमिल हुई पहेली।
जाल में पराजित पर उठी उंगली,
आग का पहाड़ पर तस्वीरें जंगली।
छवि कुछ काली और कुछ पथरीली,
कहना है ग़लत कि है मनचली ।
बारिश में छतरी यूं नहीं उछली,
पथ पर शूल और प्रीत भी घवाहिल।