सच

कब,कहां, कैसे भी सवाल,
ढोना नियति का है खेल ?
शब्दों में कहें कौन हाल,
पथ में होता कांटा बेमेल ??
रोटी गोल है बस चाल,
गुलाबों के कारण है झमेल ।
ख्वाबों में फलक लिए पाल,
जीवित ओस ,अश्क,पानी, तेल ।
कहीं बिखरना खामोशी या वाचाल,
दिल की धड़कन है अठखेल ।
बिजलियां दौड़ने जैसे थे जांच-पड़ताल,
बादलों ने दिया पानी उड़ेल ।
कहें बिना कुछ हुए इंतकाल,
नकली लोकतंत्र तो मत ठेल ।
कभी गुलाबी रात थे खाल,
इश्क में शर्त के मेल ।
यहां पर सिक्के को उछाल,
नाहक गमगीन माहौल आया अमरबेल ।
सच कहूं तो सौदा कंगाल,
चली छली गोलियां और गुलेल।
धरा नापने का हमसफ़र ख्याल ,
दरबाजा बंद और एकल जेल।
कभी हर चेहरा पर गुलाल,
मिथ्या साबित भी चमकदार तालमेल ।
प्रियतमा की काली जुल्फें निहाल,
भीगी कविता में गुरूता धकेल।
अदायगी में ठेस से बहाल,
छिपी नहीं नग्न अवस्था ठेलमठेल।
तिमिर, तितलियां,हवा,धूल, धमाल,
चांद,तारें,सूरज,जमीन, नकेल !
कलयुगी मंजर मंजिल नहीं ताल,
तालाब, सरोज, मीन, महफ़िल घालमेल।