मोड़

रंगीन मखमली गद्देदार सिंहासन, शूल नहीं याद है ।
कब तक रहें तमाशबीन,यहाँ कैसा बुनियाद है ?
ऐसे सवाल हैं संगीन,हर तरफ विवाद है ।
जवाब हसीन या उदासीन ,कुछ सफेदपोश जल्लाद हैं ।
नदी से इश्क प्राचीन,यह किताबी संवाद है ।
वहां जीवित है मीन, मंत्रमुग्ध आज उस्ताद है ।
खला अब तक नामचीन, कवायद में वाद है ।
खट्टे अंगूर हैं समीचीन ,कहती निकम्मी औलाद है ।

राहें अनंत है भिखारिन,थकान के स्वाद हैं ।
सागर पहले से नमकीन,कहीं शून्यता नाबाद है ।
साहुकारों के मोटे ऋण, न आखिरी फसाद है ।
मोटी कमाई की मशीन, ख्वाब में सलाद है ।
छल की तस्वीरे नवीन,फैला गया उन्माद है ।
हम ठहरे बेचारे दीन,प्रियतमा फिलहाल अपवाद है ।

सपेरे बजाते रहें बीन,नारा आज तक समाजवाद है ।
नाचती जमीन पर नागिन,मीठा जहर आबाद है ।
जाग गई है बाघिन,अब तक न दाद है ।
सियासी खेल की शौकीन,यकीनन नकली खाद है ।
फटा ही था आस्तीन,सबकुछ का मियाद है ।

नाजुक मोड़ पर कमसिन, बस हवा आजाद है ।
असम्भव न था छानबीन ,बेफिक्रवश कृत्रिम हर्ष-विषाद है ।
कौन किसके है अधीन,सब कितने तादाद हैं ?
रात न है दिन,ईमानदारी असल जायदाद है ।
कहाँ अब सीता शालीन,खामोश दिखा नाद है ??