सोने का महल और हिरण, मृगतृष्णा में पहल और मरण । अनुभूति में चंचल हुआ जीवन, गद्दारों में देखा गया वहशीपन । शत्रुओं से उनका गुपचुप मिलन, देशभक्ति का कैसा यह आचरण ? अखंडता पर ये उठाते प्रश्न, वित्तवासना में लिपटा उनका स्वप्न । ऊपर से देते हैं मीठा वचन, माता करें कैसे इन्हें अब अभिनंदन ?? सिर पर उनके हैं चंदन, जनता में व्याप्त है क्रंदन । वीरों का हो सदा आलिंगन, हम सब करें इनकों नमन । यही सूत्रधार हमारे अपने सुमन , यही चित्रकार हमारे हैं धड़कन । कह दिया हमें आखिर पवन, शूलों को हटायेगा हमारा यौवन । खून की होली खेलेंगे जन-जन, न जीने देंगे दुष्ट रावण।