पहल

सोने का महल और हिरण,
मृगतृष्णा में पहल और मरण ।
अनुभूति में चंचल हुआ जीवन,
गद्दारों में देखा गया वहशीपन ।
शत्रुओं से उनका गुपचुप मिलन,
देशभक्ति का कैसा यह आचरण ?
अखंडता पर ये उठाते प्रश्न,
वित्तवासना में लिपटा उनका स्वप्न ।
ऊपर से देते हैं मीठा वचन,
माता करें कैसे इन्हें अब अभिनंदन ??
सिर पर उनके हैं चंदन,
जनता में व्याप्त है क्रंदन ।
वीरों का हो सदा आलिंगन,
हम सब करें इनकों नमन ।
यही सूत्रधार हमारे अपने सुमन ,
यही चित्रकार हमारे हैं धड़कन ।
कह दिया हमें आखिर पवन,
शूलों को हटायेगा हमारा यौवन ।
खून की होली खेलेंगे जन-जन,
न जीने देंगे दुष्ट रावण।