क्या मै भी वही हूँ

कभी कभी सोचता हूँ क्या मै भी वही हूँ
जलता दीपक हूँ या बुझी हुई बाती हूँ !
ता उम्र जलता रहा रोशन जहां करता रहा
धूप सही, बरखा सही, शीत लहर में ठिठुरा
बोझ सहे सभी के लिए उफ ना कभी करता
जब तक तेल था जिस्म में जलता यू ही रहा
बस आखिरी साँस तक देकर उजाला, बुझ लिया
फिर किसी कोने में नाकाम समझ कर रख दिया
सच है ये कि खुदगर्ज़ है ये बेरहम मतलबी है ज़माना
काम आये तो सब कुछ हो वरना फेंक दिया है जाना
कभी कभी सोचता हूँ क्या मै भी वही हूँ !
जलता दीपक हूँ या बुझी हुई बाती हूँ।