जूठन

छोड़ देते हैं जूठन थाली मे वो
अपनी शान जिसे समझते हैं
किसी गरीब से पूछो तुम अन्न
की कीमत वो ही समझते हैं।

ना मिला हो खाना एक वक्त जिसे
वो तो पेट से भूखा है
उसे तो भूख मिटानी पेट की
खाना गीला है या सूखा है।

मत बेकार करो भोजन को
जो तुम्हारी थाली मे है
ये किसी माँ के बच्चों का
निवाला है तुम्हारी थाली में है।

हर कोई ‘राजन’ नही
इस दुनिया में तुम जैसा!
बहुत रंक भी है जो तरसते
एक वक्त खाना हो चाहे जैसा।