तू सामने रहे मेरे यही सोच लेना ही इश्क है नही देखा तुझे ख़्यालों में सोच लेना ही इश्क है कब मिलेंगे दीदार करेंगे सोचना भी तो इश्क है तेरी तस्वीर आँखो में बसी है यह भी तो इश्क है तुम बुलाती हो हम आना चाहते हैं यह भी इश्क है आना चाह कर भी नही आ पाते यह भी तो इश्क है मिलते रोज़ है तुमसे यह तुम भी जानती हो इश्क है इसी को अगर मिलना कहते हैं तो यह भी इश्क है रह नही पाता तुम बिन अब ‘राजन‘ये कैसा इश्क है आ भी जाओ पहलू में फिर ना कहना ये कैसा इश्क है ये कशिश एक अनकही दास्तान का ही इश्क है।