अच्छे लोग विनोद ढींगरा ‘राजन’ इस धरती पर अच्छे लोग हैंपर कहाँ हैउम्मीद की एक किरण होवो कहाँ है।हम उम्मीद क्यों करे किसी सेइस जहाँ मेंकुछ तो स्वार्थ होता है नाइस जहाँ में।बंद दरवाजे हैं दस्तक कोईसुनता नही हैअपने भी पराये हुऐ अब कोईसुनता नही है।कुछ अपनों के बिछड़ जाने सेसब पराये हो गयेइन्सानियत यहाँ खो गईअब ‘राजन‘ अपने पराये हो गये।