दहशत विनोद ढींगरा ‘राजन’ खामोशी है हर शहर गली मेंसन्नाटा सा छाया हुआ हैहर तरफ दहशत का माहौलहर कोई घबराया हुआ है।इन्सान इन्सान से मिलनेसे भी अब डरने लगा हैअपने हो कर भी अपनोसे मिल अब डरने लगा है।भय की लकीरें हर चेहरे परखौफ सा अब दिखाई देता हैएक एक सांस कीमती हैये मंजर हर तरफ दिखाई देता है।जिस पर बीत रही है वहीज़िन्दगी का मतलब समझता हैजो मौत सामने देख करमौत से जूझता, वही समझता है।ना धन ना दौलत ना रुतबाना पद कुछ काम ना आयेएक अदद सांस की कीमतअब इंसान को समझ आये।सभी ‘राजन’ समझते थेअपने को वो आज मजबूर हैंहवा में ही जहर घुल रहा हैअब वही सांस लेते मजबूर हैं।