मुद्दतों बाद

मुद्दतों बाद आज,

आँगन में मेरे,

बरसात हुई।

 

भीग गया तन-मन मेरा,

मैं छुई-मुई की

डाल हुई।

मुद्दतों बाद आज,

आँगन में मेरे,

बरसात हुई।

 

थी धरा प्यासी मैं,

मुद्दत से,

बनकर बादल वो छाये हैँ।

जाने कितना वक्त लगा पर,

शुक्र है कि वो आये हैं।

उनकी बाहों में जब सिमटी,

तो फिर से सुहागन

रात हुई।

मुद्दतों बाद आज,

आँगन में मेरे,

बरसात हुई।

 

उनके प्यार की झिलमिल बूँदे,

लबों पे मेरे गिरती जाती।

अँखियों के मोती भी झरते,

दिल की कलियाँ खिल-खिल जाती।

आज बना है वो मयकश और,

मैं मदिरा का पात्र हुई।

मुद्दतों बाद आज आँगन में

मेरे बरसात हुई।