याद जो तेरी आई

याद जो तेरी आई तो मैंने

पल-पल उसका चूम लिया

गीत लिखे जो तुझ पर मैंने

अक्षर-अक्षर उसका चूम लिया।

 

मैं न जानूँ मंदिर-मस्जिद

गिरजा और गुरुद्वारा

न मैं देखूँ चाँद गगन में

न कोई टूटा तारा

जिन राहों पर पहली बार दिखा था

रोशन मुखड़ा तेरा

उन पाकीज़ा राहों का मैंने

पत्थर-पत्थर चूम लिया।

 

तेरे-मेरे बीच में दूरी

धरा से जितनी नभ की दूरी

जैसे धरती की प्यास बुझाने

झूम-झूम कर बादल बरसे

अपने मिलन की आस जगाने

तू भी आ जा सावन बनके

इंतज़ार में नैनों से मेरे जो

आँसू झर-झर बहते हैं

उन निर्मल आँसू की मैंने

बूँद-बूँद को चूम लिया।

 

नहीं श्रृंगार अब मुझको भाये

मुझे न कोई रंग लुभाये

चूड़ी, बिंदी, काजल, झुमके

सब मुझसे हो गए पराये

तेरे विरह की अग्नि में अब

मेरा तन ये जलता जाये

अब तो आ जा मेरे प्रियतम

जीवन का सूरज ढल न जाये

तेरी साँसों में बसकर

धड़कन-धड़कन को मैंने चूम लिया।

 

याद जो तेरी आई तो मैंने

पल-पल उसका चूम लिया।

गीत लिखे जो तुझ पर मैंने

अक्षर-अक्षर उसका चूम लिया।