तुम्हारे ही ख्यालों में
ये कुहासे की चादर में
लिपटी हुई धरा
और बादलों से घिरा हुआ अम्बर,
ठण्ड में काँपता सारा जहां
सूरज की एक किरण का
इंतजार करता,
इन सब बातों से बेअसर ,
बेखबर होके
मैं तुम्हारे ही
ख्यालों में खोई हुई थी।
तुम्हारे ख्यालों की गर्मी से
मेरा रोम–रोम
पिघल रहा था,
और तुम्हारे ख्यालों के
आलिंगन में
खुद को कैद कर ,
मैं तुझमें ही सिमट
जाने को बेताब थी,
घने कोहरे में भी
तुम्हारा अक्स मुझे
साफ दिखाई दे रहा था,
और ये सूरज को
छिपाये हुए बादल भी ,
मुझे तुम्हारे ख्यालों में
खोने से रोक नहीं पाते हैं।
सर्द हवाएँ भी मुझे
तुम्हारी साँसों की गर्मी का
एहसास दिला रही हैं।
ये कड़कड़ाती ठण्ड की
लंबी तन्हा रातें,,
और इन रातों में
कभी न ख़त्म होने वाली
तुम्हारी बातें,
मेरी जागती हुई आँखों में
तेरे ख़्वाब सजाती हैं।
इस कोहरे से लिपटी हुई भोर
और बादलों से घिरे हुए
अम्बर के बीच ,
मैं तुम्हारे ही ख्यालों में
खोई हुई थी।
मेरे भीतर उमड़ती
भावनाओं की नदी ,
अपने सागर से मिलने की
आस लिए
बहती जा रही थी,
तुम्हारे ख्यालों में
खोई हुई मैं
अपने काँपते हाथों से ,
अपनी ज़िंदगी के
पन्नों को पलटती हूँ
और धुंध को चीरते हुए
बीते लम्हों को देखती हूँ,
उन लम्हों के साथ
न जाने कितनी बार
मैं टूटती और बिखरती हूँ।
और तेरे होने के एहसास
के साथ ही मैं
फिर से जीवित हो उठती हूँ।
और फिर से
तुम्हारे ख्यालों में खोकर
तुम्हें अपने पास
महसूस करती हूँ।
इस कुहासे की चादर से
लिपटी धरा और
बादलों से घिरे हुए अम्बर के बीच,
मैं तुम्हारे ही ख्यालों में खोई हुई थी।