अन्तर्मन

छुपी असंख्य तहों के भीतर,
मन की दुनिया अंतरंग मे;
देख नहीं पता तू उसको,
भटक रहा क्यो बहिरंग में।

ध्वनि आत्मा की क्षीण सही,
पर सच्ची बात बताती है;
कर ले शांत विकारों को तू,
दिल की आवाज़ बुलाती है।

ढूंढ रहा है बाहर किसको तू,
हर आनंद है स्व मन में;
झरना बहता है खुशियों का,
उद्गम जिसका अन्तर्मन में।