करो प्रेम का तुम इक़रार
मेरे साजन तुझ भी बिन देखो
कैसे मैं कुम्हलाई हूँ,
रंग नहीं है मुझपर कोई
बस काली एक परछाईं हूँ।
आकर मेरा रूप निखारो
करो प्रेम से तुम श्रृंगार
बाहों में भरकर के मुझको
करो प्रेम का तुम इक़रार।
होंठो के तेरे चुम्बन से
मेरे माथे की बिंदियाँ बन जाये,
तेरे प्रेम की उज्ज्वल काया से
मेरा श्यामल तन खिल जाये।
तेरे प्यार में भीगा ये मन
करता तुझसे इज़हार।
बाहों में भरकर के मुझको
करो प्रेम का तुम इक़रार।
जैसे दीपक के आलिंगन में
जलती बाती भी इठलाती है,
भंवरे के चुम्बन से जैसे
हर कली-कली मुस्काती है।
ऐसे ही तेरी एक छुअन से
रच उठता मेरा संसार।
बाहों में भरकर के मुझको
करो प्रेम का तुम इक़रार।
मेरा तुम श्रृंगार प्रिये
जीवन का तुम मनुहार प्रिये,
तुम बिन मेरी न कोई परिभाषा
तुम हो मेरी नज़रों की भाषा।
अब तो आओ मेरे साजन,
पढ़ लो फिर से मेरा ये मन
विरह अग्नि अब तड़पाती है;
अँखियाँ अँसुअन से भर जाती है।
नहीं किसी से मुझको प्यार,
अँखियों में है बस तेरा इंतज़ार;
बाहों में भरकर के मुझको
अब करो प्रेम का तुम इक़रार।