काली–स्याह सर्द रातों में
काली–स्याह सर्द रातों में
तन्हाई में लिपटी तेरी यादों से
गुमसुम-सी खामोश खड़ी मैं
बातें करती तेरी बातों से
काली-स्याह सर्द रातों में।
बूँद-बूँद है नीर नयन में
आकुलता है व्याकुल मन में
तुम दूर गए हो जब से साजन
हैं प्राण नहीं अब इस तन में
एक बार सही पर आ जाओ
तुम मिलने मुझसे ख़्वाबों में
काली-स्याह सर्द रातों में ।
पगली पवन जब छूकर गुजरे
रोम–रोम यूँ सिहर उठे,
नीर भरे दो नयन कलश
तेरी यादों से यूँ छलक उठे,
तेरे प्यार की निर्मल सरिता
बह उठती है मेरी आँखों से,
काली-स्याह सर्द रातों में।
मेरी रातों की खामोशी में
दिल का तुम संगीत बनो
मत दूर रहो अब मुझसे तुम
जीवन की सच्ची प्रीत बनो
रोम-रोम में बस जाओ तुम
महक उठो मेरी साँसों से
काली-स्याह सर्द रातों में
तन्हाई में लिपटी तेरी यादों से।