सीमा वर्मा 'अपराजिता'

कहने को बहुत कुछ है ! पर कैसे कहूं ? पता नही तुम समझ पाओगे या नही, जो मैं महसूस करती हूँ । दूरियों का एहसास मुझे डराता है, धमकाता है और तोड़ने का प्रयास करता है, पर मुझे मंजूर नही है, यूँ टूट जाना और टूटकर बिखर जाना । जानती हूँ अभी तुम्हारे पास वक़्त नही है, पर तुम्हारी आँखों में देखा है, मैंने मेरी फिक्र, जो तुम करते हो हर वक़्त पर कहते नही कभी मुझसे न किसी और से। वक़्त से मुझे कुछ मिले ना मिले, पर मैंने खुद को पा लिया है, तुममें । यही मेरी प्रेरणा है, यही मेरी ताकत है ।

जीवन परिचय

हिन्दी साहित्य की नन्ही कलम सीमा वर्मा का जन्म प्रतापगढ़ जनपद के पट्टी तहसील के रत्नागर पुर गाँव मे हुआ। पिता जी इलाहाबाद मे नायब तहसीलदार के पद पर तैनात थे अतः सीमा की प्राथमिक शिक्षा इलाहाबाद मे ही हुई । बचपन से सीमा को हिन्दी साहित्य के प्रति विशेष लगाव था। हिन्दी कहानियों एवं पौराणिक कथाओ के साथ साथ उन्हे हिन्दी कविताओं मे भी विशेष रुचि थी। विद्यालय के सांस्कृतिक कार्यक्रमों मे प्रतिभाग करना उन्हे बेहद पसंद था । कम उम्र मे ही उन्हे जीवन मूल्यों की अच्छी समझ थी । संयुक्त परिवार प्रथा मे उनका अटूट विश्वास था यही कारण है कि वे शहर और गाँव दोनों परिदृश्यों से भली भांति परिचित थी।पिताजी का सपना था कि सीमा जी आगे चलकर बड़ी अफसर बने और लोक सेवा करें । पिता जी के सपने को साकार करना ही उनके जीवन का उद्देश्य बन गया था किन्तु काल चक्र को शायद यह स्वीकार नहीं था । सन 2004 मे गंभीर असाध्य बीमारी SLE और PAH ने उन्हे अपनी गिरफ्त मे ले लिया । लखनऊ के संजय गांधी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान(SGPGIMS) मे इस बीमारी का पता चला और वही पर उनका इलाज शुरू किया गया । सीमा स्वभाव से बेहद ज़िंदादिल एवं उत्साह से परिपूर्ण थी । दर्द के आगे कभी घुटने नहीं टेके और विषम परिस्थितियों मे भी उन्होने अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ी । जीवन जीने की दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण कई बार आईसीयू और कोमा जैसी स्थितियों से बाहर आई। जीवन के पीड़ा और दर्द भरे वो दिन सीमा को सीमा से अपराजिता की ओर ले गए और उन्होने अपने दर्द और पीड़ा को शब्दों मे ढालना शुरू किया और प्रेम और विरह पर अपनी रचनाए लिखी । दिनांक 15/03/2018 को इलाज के दौरान SGPGIMS लखनऊ मे उन्होने अंतिम साँसे ली ।

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